Wednesday, November 18, 2015

यातना का अंत



·         “यातना का अंत-सामूहिक सरोकार” विषयक दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का मानवाधिकार जननिगरानी समिति और समाजकार्य विभाग, काशी विद्यापीठ, वाराणसी संयुक्त तत्वाधान में किया गया आयोजन |

·         7 मानवाधिकार कार्यकर्ताओ को जनमित्र सम्मान से सम्मानित किया गया |

·         इस अवसर पर “Margins to Centre Stage” और “लोकतंत्र, समाजवाद और कल्याणकारी राज्य या स्वराज्य - Democracy, Socialism, Welfare State and ‘Swaraj’” दो पुस्तकों का हुआ विमोचन |

 आज 15 नवम्बर, 2015 को गाँधी अध्ययन पीठ महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ वाराणसी में मानवाधिकार जननिगरानी समिति और समाजकार्य विभाग, काशी विद्यापीठ, वाराणसी संयुक्त रूप से दो दिवसीय “यातना का अंत-सामूहिक सरोकार” विषयक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी (15-16 नवम्बर, 2015) का आयोजन किया गया | कार्यक्रम की शुरुआत महात्मा गाँधी और शिव प्रसाद गुप्त जी की तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया | तत्पश्चात आये हुए अतिथियों का स्वागत प्रोफ़ेसर राम चन्द्र पाठक, विभागाध्यक्ष समाजकार्य विभाग, द्वारा किया गया | इसके बाद मानवाधिकार जननिगरानी समिति के महासचिव डा0 लेनिन रघुवंशी ने संगोष्ठी की रूपरेखा व उद्देश्य को रखते हुए कहा कि मानवाधिकार मूल्यों के परिपेक्ष्य में राज्य और आम ग़रीब नागरिकों के बीच बढ़ते अंतर, राज्य द्वारा यातना रोकथाम एवं यातना के स्वरूप के पहचान न होने के कारण पूर्ण उदासिनता स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होती है | आज यह बात साबित हो गयी है कि किसी समुदाय या वर्ग को प्रभाव व दबाव में लेने के लिए यातना व हिंसा का सहारा लिया जाता है | उन्होंने आगे बताया कि लगभग हर शिक्षित, बुद्धिजीवी एवं प्रगतिशील वर्ग आज यह मानता है कि यातना सिर्फ़ शारीरिक नहीं होती है, बल्कि बहुत ही गंभीर रूप में यह मानसिक, मनोवैज्ञानिक एवं सांवेगिक रूप में होती है | जिसके फलस्वरूप पीड़ित व समुदाय तनाव, अवसाद, हिंसा, आत्मह्त्या, चिंता व अनिद्रा जैसी भयंकर मनोवैज्ञानिक एवं मनोसामाजिक समस्याओं से जूझता है | समाज के सभी तबके, समुदाय और शिक्षित, बुद्धिजीवी वर्ग में यातना के विभिन्न स्वरूप के रोकथाम के लिए एक वृहद् विचार विमर्श एवं चर्चा की बहुत आवश्यकता है |

प्रोफ़ेसर एस.एस. कुशवाहा, भूतपूर्व कुलपति काशी विद्यापीठ ने कहा कि आज के वर्तमान समय में जिस तरह मानवाधिकार मूल्यों का हनन हो रहा है उसे देखते हुए शिक्षा के क्षेत्र में भी बदलाव की आवश्यकता है साथ पाठ्यक्रम में भी मानवाधिकार मूल्यों से सम्बंधित सामग्रियों को जोड़ा जाय जिससे पढने वाले छात्र जब विश्वविद्यालय से समाज में जाए तो वह फ़ैली हुई कटुता को दूर करते हुए साम्प्रदायिक सद्भावना को मजबूत करने व यातना मुक्ति के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान इस समाज को दे पाए | इसलिए आज सरकार को चाहिए कि सभी शिक्षण संस्थानों में अविलम्ब मानवाधिकार शिक्षा को एक विषय के रूप में लागू किया जाय | 
इसके पश्चात् इन्सेक संस्था नेपाल के अध्ययक्ष व मानवाधिकार कार्यकर्ता सुबोध राज पोखरियाल ने कहा कि दक्षिण एशिया स्तर पर यातना रोकथाम हेतु विभिन्न हित्कारको का एक वृहद् मजबूत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए जिससे पूरे विश्व के साथ साथ दक्षिण एशिया में मानवाधिकार हनन की घटनाओं एवं विभिन्न हिंसात्मक गतिविधियों, सांप्रदायिक हिंसा एवं यातना से प्रभावित पीड़ितों, आम ग़रीब लोगों को क़ानून के राज एवं अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार नियम-कानून के अन्तर्गत पीडितो को यातना से मुक्ति और न्याय दिलाया जा सके | आज इस मंच के माध्यम से यातना के अंत के लिए गहन चर्चा की जायेगी और उससे जो बिंदु निकलकर सामने आये है उसे सुझाव के तौर पर सरकार को प्रेषित किया जाएगा |
इसके बाद प्रोफ़ेसर अहमद सगीर इनाम शास्त्री ने कहा कि जो आज देश दुनिया में जो कटुता का माहौल बना हुआ है उसे देखते हुए यदि जल्द ही कोइ ठोस कदम नहीं उठाया गया तो व दिन दूर नहीं जब जब दुनिया से मानवता समाप्त हो जायेगी | इसके लिए हम सभी आमजन व सरकार को साथ मिलकर कोइ ठोस कदम उठाना पड़ेगा तभी समाज में कटुता, वैमनश्य व यातना से समाज को मुक्ति मिलेगी और गरीब व निम्न वर्ग के लोगो पर जो अन्याय व शोषण संगठित रूप से व असंगठित रूप से हो रहा है उसे समाप्त किया जा सकेगा | 
उपरान्त मानवाधिकार मूल्यों के संरक्षण व मजबूती के लिए सतत प्रयासरत मानवाधिकार कार्यकर्ता, सामजिक कार्यकर्ता व अधिवक्ताओ को जनमित्र पुरस्कार से नवाजा गया जिसमे सुबोध राज पुखरियल (अध्यक्ष, इन्सेक INSEC नेपाल), दिल्ली के माननीय सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता बीनू टम्टा, दिल्ली के माननीय उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश टम्टा, जाने माने फिल्म कथाकार रामजी यादव, सुप्रसिद्ध सामजिक कार्यकर्ता बल्लभाचार्यपाण्डेय, एस.एन.गिरी व महाराष्ट्र के लल्लन जैसवार को दिया गया |

इसके साथ ही इस कार्यक्रम में दो पुस्तकों का विमोचन भी किया गया जिसमे एक किताब “Margins to Centre Stage” जो कि दिल्ली की एसोसियेट प्रोफ़ेसर अर्चना कौशिक और सामाजिक कार्यकर्ती श्रुति नागवंशी द्वारा संयुक्त रूप से लिखी गयी है जिसमे मानवाधिकार जननिगरानी समिति द्वारा पिछले दो दशको में किये गए कार्यो का उल्लेख है | वही दूसरी किताब “लोकतंत्र, समाजवाद और कल्याणकारी राज्य या स्वराज्य - Democracy, Socialism, Welfare State and ‘Swaraj’” डा0 महेश विक्रम, काशी विद्यापीठ के पूर्व विभागाध्यक्ष द्वारा लिखी गयी है| 

नेशनल एलायंस ऑन टेस्टीमनी थेरेपी (NATT) जो कि भारत के 18 स्वयंसेवी संगठनो का एक मंच है | जिसके माध्यम से भारत के साथ ही साथ दक्षिण एशिया के समाजिक संगठनो को भी इस एलायंस से जोड़कर इसे मजबूत बनाते हुए यातना मुक्त समाज के निर्माण की तरफ अग्रसर हो सके | जिससे समाज में मानवाधिकार मूल्यों के संरक्षण व संवर्धन हो सके | इसके साथ ही इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में निकले बिन्दुओ पर संस्तुति पत्र तैयार करके उसे सरकार को प्रेषित किया जाएगा | 
इस संगोष्ठी में लगभग 700 लोगो ने भागीदारी की जिसमे अन्य मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफे़सर ए.एन.सिंह, पूर्व विभागाध्यक्ष, समाजकार्य विभाग महात्मा गांधी विद्यापीठ, प्रोफे़सर आर.पी. द्विवेदी, संकाय अध्यक्ष, समाजकार्य विभाग एवं निदेशक गांधी अध्ययनपीठ, श्री0 ज्योति स्वरुप पाण्डेय, पूर्व पुलिस महानिदेशक, उत्तराखंड, श्री0 दिनेश त्रिपाठी, अधिवक्ता, माननीय सर्वोच्च न्यायालय, नेपाल, डा0 मोहम्मद आरिफ, चेयरमैन, सेंटर फॉर हार्मोनी एंड पीस, जनाब ओवैस सुल्तान खान, श्री. उदय, सहित अन्य देश के जाने माने सामजिक कार्यकर्ता व बुद्धजीवी वर्ग के लोग शामिल हुए | 

इस संगोष्ठी का संचालन वाराणसी के सुप्रसिद्ध रंगमंचकर्मी श्री व्योमेश शुक्ला व धन्यवाद ज्ञापन प्रोफ़ेसर संजय, (समाजकार्य विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ) ने दिया |  

श्रुति नागवंशी  

मैनेजिंग ट्रस्टी

मानवाधिकार जननिगरानी समिति

+91- 9935599330, 9935599335


































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